एक कमरे का घर जिसमे सैकड़ो भावनाएं कैद थी (Dehra Dun, २०२१)

घर।

ये कहना झूठ होगा
कि मुझे फर्क नहीं पड़ता
नहीं होती मुझे पीड़ा
घर छोड़ते हुए
मां की आंखों में देखते हुए
बस्ता उठाते
अपने कुत्ते को bye बोलते
भाई स्कूटर पर मेट्रो तक छोड़ने आता है
पर नजरें नही मिलाता
पापा को बस गाड़ी छूट जाने का भय रहता है
ट्रेन चलती भी नही और whatsapp आता है
वापस कब आयेगी?
अपने साथी को कहना की मैं बस २४ घंटे
दो ट्रेनें दूर हूं
पैसा फेंकू तो बस ५
तुम चलो मेरे साथ
मैं जानती हु वो नही आ सकता
मैं ये भी जानती हूं कि मेरा
रुकना मुश्किल है
ये तो दो घरों की बात हुई
और मेरे व्यवसाय ने मुझे
दिए कुछ और चार घर
उन घरों में मैंने अपनी पूरी
दुनिया
बारोबार बनाई
और मिटाई है
मैं जहा आज हूं
मैं खुश हूं
पर ये कहना झूठ होगा
कि मुझे फर्क नहीं पड़ता

manya
Apr 9, 2023

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manya

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है